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शनिवार, 7 नवंबर 2020

आदिवासी औरत भाग1


 नमस्ते दोस्तो, मैं राज दोस्तो नागपुर महाराष्ट्र में रहता हूँ. मेरी उम्र ३५ साल है और शादीशुदा हूँ. मेरी हाइट 5 फुट ८इंच और हथियार ९इंच का है. मेरी सेक्स लाइफ अच्छी चल रही हैदोस्तो नागपुर महाराष्ट्र में रहता हूँ. मेरी उम्र ३५ साल है और शादीशुदा हूँ. मेरी हाइट 5 फुट ८इंच और हथियार ९इंच का है. मेरी सेक्स लाइफ अच्छी चल रही है

आज मैं अपने साथ घटी एक घटना बता रहा हूं.
बात है दिसंबर 2०१९ की है, उस समय मेरी अपनी वाइफ से थोड़ी अनबन चल रही थी, तो हमारे बीच शायद १० दिनों से सेक्स नहीं हुआ था. मुझे अपने रिश्तेदार के यहां पूना जाना पड़ा. मैंने सरकारी बस में जाने का फैसला किया.
मैं रात की ८ बजे की गाड़ी से निकला. बस में बहुत भीड़ थी, तो मुझे सबसे आखिरी वाली सीट मिली. आखिरी लाइन में भी खिड़की वाली सीट मिली, जिसका एक शीशा टूट हुआ था. सर्दी के कारण कोई उधर बैठना नहीं चाहता था. गाड़ी चूंकि पूरी भर गई थी, अब मैं अपने आप को कोसने लगा कि प्रायवेट गाड़ी से जाता तो अच्छा होता. आते वक्त मैंने कोई कम्बल या शॉल भी नहीं लिया था. मेरे बगल में ३ बूढ़े बैठ गए थे. बस निकल पड़ी.
खिड़की के टूटे हुए शीशे से जोर की हवा अन्दर आ रही थी. बुड्डों ने अपने कम्बल निकाल लिए. मैं तो ठंड से मरा जा रहा था. ऐसे में गाड़ी अकोला रुक गयी.. जो लोग उतरे उनकी जगह जो लोग खड़े थे, वो लपक कर बैठ गए. मैं फिर अपनी जगह फंस गया. मेरे बाजूवाले बूढ़े भी आगे चले गए थे. बस फिर चल पड़ी.
आगे एक घंटे के बाद बस एक ढाबे पर रुक गई और मैं भी नीचे उतरा. मेरी खाना खाने की इच्छा नहीं थी. बस टहल रहा था कि पास में एक जनरल स्टोर था. वहां पर शो-केस में कंडोम के पैकेट लगे हुए थे. उसे देखकर मेरे मन में हलचल होने लगी. वहाँ से 2-3 लोगों ने पैकेट खरीदे.
मैं उस दुकानदार के पास गया और उससे पूछा कि कोई जुगाड़ हो सकता है क्या?
वह बोला- साहब, अकेले सफर कर रहे है क्या?
मैंने हां में जवाब दिया.
उसने कहा- आज आपका नसीब अच्छा नहीं है. जो दो धंधेवाली आती हैं, साली आज वे भी नहीं आईं.. नहीं तो ५०० रु में एक शॉट हो जाता.
मैं अपने नसीब को कोसता रह गया. एक तो १० दिन से प्यास नहीं बुझी थी. ऊपर से ठंड की हालत में लंड भी चुनमुन हो रहा था. मैं मन ही मन में अपनी बीवी के साथ वाले पल याद करने लगा और मेरा लौड़ा पैंट के अन्दर खड़ा हो गया.
मुझे जाने क्या सूझी, सोचा कि कंडोम लेकर बस में मुठ मारूँगा और कंडोम फेंक दूंगा. मैंने एक कामसूत्र का पैकेट ले लिया. साथ ही में उसके यहां से एक गर्म बड़ी सी शॉल भी ले ली और बस में आ गया.
बस अब चलने लगी थी. सिर्फ पीछे वाली लाइन में मैं अकेला था जबकि आगे पूरी बस भरी थी. आधे घंटे बाद सारे लोग सो गए. मैं अपने सेक्स की दुनिया के पल याद करते हुए अपना लौड़ा ऊपर से सहला रहा था कि अचानक बस रुक गयी. बाहर बहुत लोगों का शोर आ रहा था. शायद कोई दूसरी सरकारी बस फेल हो गई थी. उस बस वाले उन लोगों को हमारी गाड़ी में आगे भेज रहे थे.
बहुत सारे लोग अन्दर आ गए और जहां जिसे जगह मिल गई, वे वहीं बैठने लगे. इतने में मेरे तरफ १० से १५ लोग आ गए, सभी शक्ल से देहाती लग रहे थे. उनमें से ८/१०महिलाएं भी थीं. उनके साथ ४/५बच्चे भी थे. सारे मर्द सीटों पर बैठ गए, अब जगह बची नहीं थी, तो औरतें नीचे पैरों के पास बैठ गयी. एक औरत मेरे पैरों के ठीक सामने बैठी. उसके बगल में 6 या 7 महीने का बच्चा होगा. उसके बाजू में 2 बूढ़ी औरतें बैठ गई थीं.
मुझसे तो हिलते भी नहीं बन रहा था. जो उनके मर्द थे, वे सारे शराब पिये हुए थे. बहुत बास आ रही थी. मेरे मन को बहुत बुरा लगा कि मर्द होकर खुद सीट पर बैठ गए और बूढ़ी और जवान औरतों को नीचे बिठा दिया.
इन सबमें मेरा ध्यान अब मेरे सामने बैठी औरत पर गया. शायद 23 या 24 साल की देहाती औरत थी. उसका गेहुंआ रंग था, दूध से भरे चुचे 36 साइज़ के होंगे. उसने मुझे उसे घूरते हुए देख लिया और एक बार अपने मर्दों की तरफ देखा. मैं डर गया और सोने का नाटक करने लगा.
बस आगे बढ़ना शुरू हो गई और फिर आगे निकल पड़ी. जोर की ठंड थी और मेरी खिड़की से जोर की हवा आ रही थी. मैंने अपने को शॉल में लपेट लिया. उतने में उस औरत का बच्चा ठंड से रोने लगा. उसने उसके मर्दों की तरफ देखा, सब सो गए थे. दोनों बूढ़ी औरतें भी चिपक कर सो गई थीं. बेचारी के पास ठंड से बचने के लिए कुछ नहीं था.
उसने मेरी तरफ देख के बोली- बाबूजी, जरा खिड़की बंद कर दो, जोर से हवा चल रही है, मेरे बच्चे को ठंड लग रही है.
मैंने कहा- खिड़की का कांच टूटा है, खिड़की तो बंद है.
उसने ऊपर खिसककर देखा, जिससे वह मेरे करीब को हो गई.

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